Friday 2 March 2018

बदलता नज़रिया Part I

फेसबुक पर कुछ मित्रों के आग्रह पर यह पोस्ट मैं हिंदी में लिख रहा हूँ। मेरी व्यक्तिगत जीवन की एकरूपता के कारण, मैं ज्यादातर फैंटेसी ही लिख रहा था लेकिन सब लोग इसमें भी चेंज चाहते हैं और एक ऐसी फैंटेसी चाहते हैं जिसमें पुरुष पात्र को जबरन अपना पहनावा और तौर तरीके बदलने पड़ें।
मैं अपने मित्रों के दिये हुए बिषय पर ही यह नई फैंटेसी लिख रहा हूँ। पसंद आये तो बताना ज़रूर।

तारीख 25 नवंबर, 2054
स्थान नई दिल्ली।

तीसरे विश्व युद्ध को लगभग तीस वर्ष बीत चुके हैं। चीन और अमेरिका के बीच हुए इस युद्ध से कोई भी देश अछूता नहीं रह पाया था और विश्व की आधी आबादी इस महाविनाश की भेंट चढ़ गई थी। युद्ध के बाद होने वाली विवेचना में यह बात स्पष्ट थी कि यदि निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ महिलाओं पर होता तो शायद यह महाविनाश टाला जा सकता था। परिणाम स्वरूप बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपने महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं को ही नियुक्त करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में ज्यादातर देशों में राष्ट्राध्यक्ष भी महिलाएं ही बन गईं और सेनाओं के उच्च पद भी उन्हीं के लिए आरक्षित हो गए। कुछ पुरुषों ने विरोध किया लेकिन किसी ने सुना ही नहीं।

महिलाओं ने नई ज़िम्मेदारियाँ ज़रूर ले ली थीं लेकिन उनकी शारिरिक स्थिति कमज़ोर थी। ऐसे समय में एक नई दवा का आविष्कार हुआ। बैबुटौक्स नाम की इस दवा के तीन इन्जेक्शन लेने से महिलाओं की मांसपेशियां मजबूत हो जाती थीं। लेकिन इसका साइड इफ़ेक्ट हुआ कि उनके स्तन पुरुषों की तरह हो जाते थे। कामकाजी महिलाओं के लिए शारिरिक ताकत होना ज़रूरी था अतः अधिकतर महिलाओं ने स्तनों को बेकार मानते हुए, बैबुटौक्स ले लिया। वैसे भी उन्हें अब अपना जीवनसाथी चुनने के लिए बड़े स्तनों की नहीं, बल्कि अच्छी नौकरी की ज़रूरत थी।

महिलाओं के कारण पुरुषों के लिए नौकरियों का अकाल सा पड़ गया। अधिकतर पुरुषों को नौकरी से निकाल दिया गया था। ऐसे में अपराध बढे तो महिला पुलिस को ऐसे पुरुषों के विरुद्ध असीमित अधिकार दे दिए गए। बैबुटौक्स, पुरुषों में उल्टा असर करता था। ऐसे में जो भी पुरुष अपराध करते हुए पकड़ा जाता था उसे पुलिस बैबुटौक्स के तीन इन्जैक्शन लगा देती थी। ऐसे पुरुष कमजोर हो जाते थे एवं अपराध से तौबा कर लेते थे लेकिन उनके स्तन भी बढ़ जाते थे। 

आश्चर्यजनक रूप से, ऐसे लड़कों की मांग शादी के लिए बढ़ गई। कामकाजी लड़कियाँ ऐसे लड़कों से ही शादी करना चाहती थीं जो शादी के बाद उनके घर में रह कर घर की जिम्मेदारी सँभालें और भविष्य में होने वाले बच्चों को भी अपना दूध पिला सकें। इससे वह अपने कैरियर पर ज्यादा ध्यान दे सकती थीं।

समय बदलने के साथ ही फैशन इन्डस्ट्री की सोच बदली। कैरियर की भागदौड में महिलाएं सजने संवरने पर ध्यान नहीं दे रही थीं लेकिन घरेलू पुरुष खुद को उनके लिए आकर्षक बनाए रखना चाहते थे। कुँवारे लड़कों के लिए बैबुटौक्स लेकर खूबसूरत परिधान पहनना, एक प्रकार से समाज को यह संदेश था कि यह लड़का विवाह के बाद एक घरेलू पति की भूमिका निभाने के लिए तैयार है और यही उनके लिए अच्छा घर और कमाऊ पत्नी मिलने की उम्मीद थी। 

मोनू एक घरेलू पति था और उसकी पत्नी गरिमा एक बड़ी सौफ्टवेयर कम्पनी मे काम करती थी। कुछ साल पहले तक मोनू नौकरी करता था और गरिमा घर का कामकाज लेकिन अब सब बदल गया था। मोनू को नौकरी से निकाल दिया गया और उनकी नौकरी गरिमा को मिल गई। जब बहुत कोशिश पर भी दूसरी नौकरी नहीं मिली तो मोनू ने नियति स्वीकार कर ली और हाउस हसबैंड बन गया। सुबह जल्दी उठ कर गरिमा के लिए चाय नाश्ता तैयार करने से लेकर खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना, झाड़ू पोंछा इत्यादि सब काम मोनू करने लगा क्योंकि गरिमा तो सुबह नौ बजे औफिस जाकर रात आठ बजे तक ही घर लौटती थीं। गरिमा इतना थक जाती थी कि जल्दी ही उसने बैबुटौक्स इन्जेक्शन का कोर्स ले लिया। 

बैबुटौक्स के बाद मोनू ने गरिमा मे आश्चर्यजनक परिवर्तन नोट किया। वह न सिर्फ शारिरिक बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत मजबूत हो गई थीं। सैक्स लाइफ में भी गरिमा पहले से भी ज्यादा आक्रामक हो गई थी। स्तन फ्लैट हो जाने के बाद से हमेशा सैक्स की शुरुआत उसी की तरफ से होती थी और जब तक वह पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं हो जाती थी तब तक मोनू के लाख विनती करने पर भी उसे नहीं छोड़ती थी। मोनूू के साथ, उनका व्यवहार भी सख्त हो गया था। छोटीछोटी बात पर मोनू को झिड़क देना उनकी आदत हो गई थी। उनकी डाँट से बचने के लिए मोनू रोज़ उन्हें खुश करने की कोशिश करता था लेकिन गरिमा खुश नहीं रहती थीं। 
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इसकी वजह एक दिन मोनू को पता चल गई जब गरिमा ने उसको भी बैबुटौक्स लगवाने को कहा। मोनू ने कहा "लेकिन आपने बैबुटौक्स लेते समय वायदा किया था कि मुझे बैबुटौक्स के लिए कभी मजबूर नहीं करोगी।" गरिमा की आवाज़ थोड़ी सख्त थी "मैं सिर्फ तुम्हें बता रही हूं कि कल की औफिस पार्टी में तुम अकेले पुरुष थे जो कि पैन्ट कोट मे थे और मेरी सभी फ्रैंड्स के पति साड़ी पहने हुए थे। मेरा प्रमोशन ड्यू है और मेरी बौस ने मुझसे पूछा कि अगर मैं अपने पति तक को मैनेज नहीं कर सकती तो इतनी बड़ी कम्पनी कैसे मैनेज करूँगी?" "लेकिन मुझे साड़ी पहनना अच्छा नहीं लगता है" मोनू की आवाज़ दबी हुई थी। गरिमा तैश में आ गईं, "मुझे भी औफिस जाना अच्छा नहीं लगता लेकिन सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। तुम्हारा अगर काम चल भी गया तो आगे होने वाले बच्चों का क्या होगा? तुम अच्छी तरह समझते हो कि अगर हमारे बेटा हुआ तो उसको शादी के बाद अपनी पत्नी के घर पर ही रहना होगा आज के ज़माने में उसकी पत्नी, उसका शर्ट पैंट पहनना बर्दाश्त नहीं करेगी।क्या उदाहरण रखोगे तुम उसके सामने?"

मोनू के पास कोई जवाब नहीं था। गरिमा ने अपना ब्रीफकेस उठाया और औफिस के लिए निकल गई।

गरिमा के औफिस जाने के बाद, मोनू रोज़ की तरह घर के कामकाज में लग गया।पिछले कुछ समय में वह इन कामों में कुशल हो गया था। वाशिंग मशीन लगा कर झाड़ू पोंछा करने और दाल को प्रैशर कुकर में रख कर बर्तन माँजने से अब उसे अपने लिए भी समय मिल जाता था। साड़े बारह बजे तक उसके काम खत्म हो गए थे और बारह.पैंतालीस पर डिब्बे वाला गरिमा का पैक किया हुआ लंच बॉक्स लेकर जा चुका था।लेकिन आज मोनू को रोज़ की तरह नींद नहीं आई। उसे बार बार यही ख्याल आ रहा था कि गरिमा रोज़ कितनी मेहनत कर के रुपये कमाती है जिससे घर के खर्च चलते हैं और इसके बदले में उसने अपनी ज़िद मे औफिस पार्टी में साड़ी नहीं पहन कर गरिमा की पोजिशन खराब की थी। 

मोनू को ध्यान आया कि उसके पड़ोसी नीरज जी भी हाउस हसबैंड हैं और छह महीने पहले ही बैबुटौक्स लगवा चुके हैं। नीरज जी अब साड़ी में ही रहते थे। मोनू कुछ देर तक सोचता रहा और फिर अचानक ही उसने फ्लैट का ताला लगाया और नीरज के फ्लैट की ओर चल पड़ा।

1 comment:

  1. perfect start..hindi font is good.liked in hindi.you have written a great story,almost reality..while reading looking like a reality.

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