Saturday, 11 January 2020

Hello friends,

I request you all to please pray for speedy recovery of my father in law. He is very sick and is undergoing dialysis, every alternate day.

Monu


Sunday, 23 December 2018

Hi everyone,

I know that most of you are waiting for my stories eagerly but the last few months have been very stormy and life has been topsyturvy for me.

G changed her company and is now the regional head for Northen India in her new company. Since the Headquarter of this company is in Gurugram, we had to shift our residence from Dilshad Garden to Gurugram and I had to take care of all shifting as G was busy in her new company. I had no other option but to have a male attire to get the essential work done by the labour while shifting and later while getting the new company flat prepared as the new nest for us.

Things are back to normal now and with the permission of G, I shall shortly post my new experiences or a new fantasy.

Love u all.

Monu

Sunday, 4 March 2018

बदलता नज़रिया V

अगले कुछ हफ्तों में, मोनू, अपने नए रूप में पूरी तरह ढल चुका था। वह खूब अच्छे से खुद अपनी साड़ी बाँध लेता था और मेकअप मे भी परफैक्ट हो गया था। गरिमा भी उससे खुश थी और हर रविवार, उसको शौपिंग कराने या पिक्चर दिखाने लेकर जाती थी।

आज के दिन, मोनू , किचन में लगा हुआ था और उसका दिल बहुत ज्यादा धड़क रहा था। आज गरिमा के पिताजी और उनकी छोटी बेटी प्रिया, उसके घर पर आ रहे थे। गरिमा की माता जी की मृत्यु तो बहुत पहले ही हो चुकी थी। गरिमा की एक सहकर्मी के भाई के साथ, प्रिया की शादी की बात चल रही थी और इसी सिलसिले में, वह लोग, प्रिया के लिए लड़का पसंद करने आ रहे थे।

हाउस हसबैंड बनने से पहले, मोनू का प्रिया के साथ, जीजा साली वाला मज़ाक खूब चलता था लेकिन अब रिश्ता बदल चुका था। नीरज जी ने भी मोनू को यही सलाह दी थी कि अब उसको, प्रिया को सम्मान दे कर, दीदी कह कर बात करनी है। गरिमा ने उन लोगों को, मोनू के बैबुटौक्स लगवाने के बारे में नहीं बताया था ताकि वह उन्हें सर्प्राइज़ दे सके।

मोनू ने आज हरे रंग की साड़ी पहनी थी। हरी बिन्दी और हरी चूड़ियां उस पर फब रही थीं। इसके साथ, उसने गहरे लाल रंग की नेलपॉलिश और लिपस्टिक लगाई थी। गरिमा ने उसे अपनी पुरानी पायजेब भी दे दी थी जिसे पहन कर जब वो चलता था तो छम छम की आवाज़ आती थी।

गरिमा को आज औफिस से लौटने मे देर हो गई और उसके पापा एवं प्रिया, पहले ही घर पहुंच गए। जब मोनू ने उनके लिए दरवाजा खोला तो उसको इस रूप में देख कर, पिता जी आश्चर्यचकित रह गए। प्रिया को शायद गरिमा ने कुछ कुछ बता दिया था लेकिन फिर भी वह मोनू को देखती ही रह गई। मोनू ने पिता जी के पैर छुए और प्रिया को हाथ जोड़कर नमस्ते की। वह आदरपूर्वक उन दोनों को अन्दर लेकर आया और उन्हें सोफे पर बिठा कर उनके लिए एक ट्रे मे पानी लेकर आया।दोनों हक्के बक्के से उसे देख रहे थे।

इतने में ही गरिमा ने दरवाजे की घंटी बजा दी। मोनू ने जल्दी से दरवाजा खोला और रोज़ की तरह, गरिमा के पैरों में अपना सिर रख दिया। साथ ही, उसने आँखों से ही गरिमा को पिता जी के अन्दर होने का इशारा भी कर दिया ताकि गरिमा उसके साथ कोई शरारत ना करे। गरिमा ने अन्दर आते ही अपना कोट और टाई उतारकर मोनू को पकड़ा दिये और अपने पापा और प्रिया के साथ बैठ गई। अचानक उसने ज़ोर से मोनू को आवाज़ दी। मोनू चाय बनाना छोड़ कर, जल्दी से आया। "तुमने अब तक पापा और प्रिया को चाय नहीं पिलाई है।" गरिमा ज़ोर से दहाड़ी। पापा ने फौरन उसका बचाव किया," बेटा, हम अभी अभी तो आए हैं। अभी पानी पिलाया उसने। चाय बनाने जा रहा था कि तुम आ गईं।" "ठीक है। जल्दी चाय और नाश्ता लाओ।" गरिमा की आवाज में सख्ती थी।

मोनू ने जल्दी जल्दी, चाय और नाश्ते की ट्रे सजाई। साड़ी पहन कर इन कामों को करने की आदत, अभी इतनी ज़्यादा नहीं थी फिर भी कम से कम समय में ही वह चाय नाश्ते की ट्रे के साथ बाहर आ गया। मेज़ पर ट्रे रख कर उसने सब को चाय दी एवं आग्रहपूर्वक नाश्ते की प्लेट दी और जल्दी से पकौड़ों की प्लेट लाने किचन में चला गया। जब वह लौटा तो गरिमा और प्रिया ज़ोर ज़ोर से हँस रहे थे। हँसी रोकते हुए, गरिमा ने उससे कहा,"मोनू, मेरी चप्पल ले कर आओ।"

मोनू समझ गया कि गरिमा अपनी बहन को दिखाना चाहती थी कि उसका अपने पति पर कितना रौब है। वह चप्पल लेकर आया लेकिन उसने चप्पल गरिमा के पैरों में नहीं रखी। वह गरिमा के पैरों में ज़मीन पर बैठ गया और उसने एक एक कर के गरिमा के दोनों पैरों से उसके जूते मोज़े उतारे और फिर अपने हाथों से उसे चप्पल पहनाई।

जब वह चप्पल पहना कर खड़ा हुआ तो गरिमा के चेहरे पर अभिमान साफ झलक रहा था। प्रिया ने पूछा, "जीजू, ऐसे कपड़े पहन कर इस तरह जीजी की सेवा करना कैसा लगता है आपको?" मोनू जानता था कि प्रिया उसका मज़ाक बना रही है, फिर भी वह द्रढता से सिर ऊँचा कर के बोला, "आज परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं दीदी। मैं अपनी पत्नी का दास हूँ और उनकी आज्ञा ही मेरे लिये सब कुछ है। उनकी सेवा करना मेरे लिए गर्व की बात है।" "अगर दीदी कहें तो मेरी भी ऐसे ही सेवा करोगे?" प्रिया के स्वर में उपहास था। "आपकी सेवा के लिए, किसी को लाने को ही तो पापा जी आये हैं।" मोनू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

रात को, डिनर के बाद, सारा काम खत्म कर के, जब मोनू अपने बैडरूम मे पहुँचा तो गरिमा लैपटॉप पर कोई काम कर रही थी। मोनू ने चुपचाप बाथरूम में जाकर अपनी साड़ी उतारकर नाइट गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर गरिमा के पैर अपनी गोद में रख लिये और उनको दबाने लगा। गरिमा ने लैपटॉप बन्द कर साइड में रख दिया और मोनू को अपनी गोद में खींच लिया।"थैन्क्यू जानू, तुमने बहुत अच्छे से सबका आदरसत्कार किया। पास हो गए तुम।" गरिमा के हाथ मोनू के गाउन के अंदर घूम रहे थे। "आप नाराज़ होती हैं तो मेरे हाथ पैर फूल जाते हैं नहीं तो चाय में देर नहीं होती।" मोनू ने छूटने की आधी अधूरी कोशिश करते हुए कहा।"ओह, वो तो मैं प्रिया को दिखाना चाहती थी कि उसे लड़का पसंद करते समय क्या देखना चाहिए। जानते हो, उसने कपिल को पसंद तो कर लिया लेकिन शर्त रखी है कि कपिल यहां आकर देखेगा कि तुम किस प्रकार मेरी सेवा करते हो। यदि वह इसी तरह अपनी पत्नी की सेवा करने को तैयार हो तभी वह कपिल से शादी करेगी।" गरिमा यह कहते कहते, मोनू के ऊपर से गाउन उतार चुकी थी।

अपने वक्षों को छुपाने की असफल कोशिश करते हुए मोनू के होठों पर संतुष्टि की मुस्कान थी।

Friday, 2 March 2018

बदलता नज़रिया IV

नीरज जी ने आज बहुत मन से, मोनू का मेकअप किया था। मोनू ने गरिमा के फेवरेट लाल रंग की साड़ी पहनी थी। ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैन्टी, सब मैचिंग लाल रंग के थे। लाल नलपौलिश और लिपस्टिक से उसका गोरा रंग और भी निखर गया था। नीरज ने साफ इन्स्ट्रक्शन भी दिये थे। "घर का दरवाजा खोलते ही अपना माथा, उनके पैरों में रखना है और सिन्दूर की डिब्बी, उनको दे कर अपनी माँग भरवानी है। जब वो माँग भर दें तब एक बार फिर, पैर छू कर आशीर्वाद लेना है।" "इसके बाद क्या करना है भैया?" मोनू ने पूछा था। नीरज जी हँस पड़े थे," इसके बाद तुम्हें कुछ नहीं करना। फिर तो जो करना है, वो ही करेंगी।"

गरिमा के लिए दरवाजा खोल कर, मोनू जैसे ही उनके पैरों में झुका, गरिमा ने उसको उठा कर अपनी बाँहों मे भर लिया। मोनू के लाख विनती करने पर भी, गरिमा ने उसकी माँग भरने की जगह उसकी साड़ी खींचनी शुरू कर दी। बमुश्किल ही मोनू ने दरवाजे को लौक किया लेकिन तब तक वो साड़ी, जिसे बाँधने मे उसे और नीरज जी को पौना घंटा लगा था, उसके बदन से उतर चुकी थी। उसकी माँग भरते ही, गरिमा ने ब्लाउज के बटन से खेलना शुरू कर दिया। ब्लाउज उतरते ही, मोनू के नये नवेले यौवन कपोत, ब्रा से बाहर निकलने को मचलने लगे। गरिमा आज पहली बार मोनू को इस रूप में देख रही थी और उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना नहीं था। उसने दोनों स्तनों को ब्रा के ऊपर से ही मसल दिया। मोनू के होटों से सिसकारी निकली जिससे गरिमा की उत्तेजना और भी बढ़ गई। गरिमा ने मोनू को अपनी बाँहों मे लिया और उसके हाथ, मोनू की कमर पर लगे ब्रा के हुक से उलझ गए।

ब्रा के हटते ही, गरिमा तो जैसे पागल सी हो गई। उसने बड़ी बेदर्दी से मोनू के ब्रैस्ट्स को मसलना शुरू कर दिया। मोनू दर्द से कराह रहा था और गरिमा को रोकना भी चाहता था लेकिन बैबुटौक्स लगने के बाद, उसके शरीर में ताकत बहुत कम हो गई थी और वास्तव में तो, उसे इस दर्द में भी अजीब सा मज़ा आ रहा था। थोड़ी देर में ही, गरिमा ने उसके पेटीकोट और पैंटी भी उतार फेंके और पूरी ताकत से, उसे अपनी बाँहों मे भींच लिया।
मोनू इस समय बिल्कुल नग्न अवस्था में था लेकिन गरिमा के शरीर पर से एक कपड़ा भी नहीं हटा था। गरिमा ने भी जल्दी जल्दी,अपनी पैंट और अन्डरवीयर उतारे और बेकरारी से मोनू के ऊपर सवारी करने लगी। कमरे का मौसम मोनू की सिसकारियों से और भी गरम होता जा रहा था। जल्दी ही, गरिमा का उन्माद, अपनी चरमसीमा पर पहुंच गया। उसने अंतिम क्षणों में मोनू को भी रिलीज होने की परमिशन दे दी और दोनों एक साथ, मादकता के अंतिम पड़ाव पर पहुँचे।

To be continued

बदलता नज़रिया III

गरिमा ने फोन ले कर तुरन्त डाक्टर से अपाइंटमेंट ले लिया और उसी शाम औफिस से लौट कर मोनू को बैबुटौक्स का पहला इन्जेक्शन लगवाने ले गई। बैबुटौक्स लगवाने के लिए भरे जाने वाले फॉर्म मे उसने अपना नाम कुलदीप गुप्ता और पत्नी का नाम गरिमा चौधरी भरा तो फॉर्म रिजैक्ट हो गया। बाहर बैठे हुए मेल रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि पहले यह कानून बना था कि शादी के बाद महिलाएं अपना सरनेम नहीं बदलेंगी लेकिन अब नये कानून के मुताबिक पुरुषों के लिए शादी के बाद अपनी पत्नी का सरनेम लगाना अनिवार्य हो गया है और यदि पत्नी चाहे तो पति का नाम भी बदल सकती है। इसके लिए आधार कार्ड में परिवर्तन कराने के लिए दूसरा फॉर्म भरा गया जिस पर गरिमा ने मोनू के नये नाम, मोनू चौधरी, पर अपनी सहमति के हस्ताक्षर किए। नये आधार कार्ड के साथ वे लोग दोबारा अस्पताल आए अपने नये नाम के साथ मोनू को बैबुटौक्स का इन्जेक्शन लगा दिया गया। 

इन्जैक्शन काफी दर्द वाला था और अगले दिन, दो इन्जैक्शन और भी लगने थे। इन्जैक्शन लगाने वाले मेल नर्स ने मोनू को बताया कि यदि सिकाई कर लो तो दर्द में तो आराम मिलेगा लेकिन आगे जा कर ब्रैस्ट्स का साइज़ छोटा रह जाएगा। मोनू ने सिकाई को मना कर दिया क्योंकि जब उसे गरिमा की खुशी के लिए ब्रैस्ट्स बढाने ही थे तो दो या तीन दिन दर्द बर्दाश्त कर के फुल साइज़ ब्रैस्ट्स का होना ही उसे बेहतर लगा।

लेडी डाक्टर को फीस दे कर, गरिमा बाहर निकली तब मोनू का दर्द से बुरा हाल था। उसने गरिमा से घर चलने की रिक्वेस्ट की ताकि वह आराम कर सके लेकिन गरिमा, मोनू को शौपिंग कराने मॉल ले गई।"तुम अपने लिए कुछ साड़ियां और ड्रैस खरीद लो। अगले तीन दिन में यह कपड़े नहीं पहन पाओगे।" गरिमा ने कहा। "घर पर आपकी इतनी साड़ियाँ पड़ी हैं। वही पहन लूँगा। बेकार पैसे खराब मत करिए।" मोनू ने कहा। "लेकिन मेरी पुरानी ब्रा और पैंटी तुम्हें नहीं आने वाले हैं" गरिमा के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। मोनू ने शरमा कर सिर झुका लिया। गरिमा उसे मॉल के उस सैक्शन मे ले गई जहाँ बड़े बड़े शब्दों मे 'मेल अन्डर गार्मेंट्स' लिखा था और मोनू को कई सारी ब्रा, पैन्टी, रैडीमेड ब्लाउज और पेटीकोट दिलवा दिये। 

बैबुटौक्स लगने के अगले दिन सुबह से मोनू को कमजोरी का अहसास तो था लेकिन उसे अपने अन्दर और भी कई फर्क महसूस दे रहे थे। उसके सीने में अजीब सी सनसनाहट थी लेकिन यह तो वह जानता ही था कि अब उसकी बाकी माँसपेशियाँ थोड़ी कमजोर हो जाएँगी और स्तन बढ़ जाएँगे पर सबसे अजीब बात तो उसे ये लग रही थी कि उसका नज़रिया बदल रहा था। गरिमा की चाय बना कर जब वह उसे उठाने गया तो रोज़ की तरह, उसका नाम लेने की जगह उसके मुँह से यही निकला, "सुनिए जी, चाय ठंडी हो रही है। उठ जाइये।" गरिमा कुनमुना कर फिर सो गई। मोनू ने चादर मे से गरिमा के पैर निकाले और धीरे धीरे उसके पैरों को सहलाने लगा। गरिमा की नींद खुल गई और उसने मोनू को अपनी बाँहों मे खींच लिया। "अरे अरे, छोड़िये मुझे, चाय ठंडी हो रही है। प्लीईईईईईईईईज़। जो करना हो, रात मे कर लेना। अभी छोड़िये।" मोनू, गरिमा की बलिष्ठ बाँहों मे कसमसा रहा था। रात रात में ही, उसके ब्रैस्ट्स थोड़े से बढ़े थे और गरिमा को शायद इसलिए और भी मज़ा आ रहा था। लेकिन गरिमा को भी पता था कि औफिस टाइम पर पहुँचना, आज बहुत ज़रूरी था क्योंकि उसकी नई बॉस आज से ऑफीस जॉइन कर रही थी। थोड़ी देर में ही, उसने मोनू को छोड़ दिया और जल्दी से चाय खत्म कर बाथरूम में घुस गई।

गरिमा के औफिस निकलते ही, मोनू जल्दी जल्दी सारे काम खत्म कर के, नीरज के पास पहुँच गया और उनको खुशखबरी दी कि उसने बैबुटौक्स का पहला इन्जैक्शन लगवा लिया है। आज गरिमा का साथ जाना सम्भव नहीं था इसलिए वह कल ही लेडी.डाक्टर को तीनों इन्जैक्शन की फीस दे आई थी। नीरज ने भी जल्दी जल्दी अपना बचा हुआ काम खत्म किया जिसमें आज मोनू ने भी उनकी मदद की। नीरज ने अपनी पत्नी को फोन कर मोनू के साथ, डाक्टर के यहाँ जाने की परमिशन ली और दोनों ई रिक्शा से डाक्टर के यहाँ पहुँच गए।

आज के दोनों बैबुटौक्स, मोनू के ब्रैस्ट्स मे लगे और इसमें कल जितना दर्द नहीं हुआ। दो घंटे के अन्दर ही मोनू के ब्रैस्ट्स फुल साइज़ डैवलप हो चुके थे। तब तक मोनू और नीरज घर पहुँच चुके थे। मोनू ने नीरज की मदद से जब ब्रा पहनने की कोशिश की तब उसे पहली बार पता चला कि पीछे की ओर ब्रा का हुक लगाना कितना मुश्किल होता है। साड़ी बाँधने मे भी मुश्किल हुई लेकिन मोनू जानता था कि कुछ समय में आदत पड़ जाएगी। गरिमा का घर लौटने का टाइम हो रहा था इसलिये म़ोनू भी जल्दी से अपने घर पहुँच कर गरिमा की इन्तज़ार करने लगा।

बदलता नज़रिया Part II

नीरज जी ने खुशी खुशी मोनू का स्वागत किया। वह भी इस समय तक घर का काम खत्म कर चुके थे और अपने लिए चाय बना रहे थे। मना करने पर भी, उन्होंने मोनू के लिए भी चाय बनाई और दोनों हाउस हसबैंड्स चाय की चुस्कियां लेने लगे। नीरज जी इस समय भी साड़ी में थे जबकि मोनू शर्ट पैंट पहने हुए था लेकिन उसने ध्यान दिया कि नीरज जी इस बात से बिल्कुल बेपरवाह थे। नीरज जी ने हरी साड़ी और उससे मैचिंग हरा ब्लाउज पहना था। उनके कानों में बालियां और गले में मंगलसूत्र था। लाल रंग की नेलपौलिश, बिन्दी और लिपस्टिक थी और माँग मे सिंदूर भी था। उसने यह भी देखा कि मोनू को तो नौरमल चाय मिली थी लेकिन नीरज जी लैमन टी पी रहे थे।
बात की शुरुआत चाय से ही हुई जब मोनू ने पूछा कि वह लैमन टी क्यों पी रहे हैं। "फिगर का ख्याल तो रखना ही पड़ेगा। बैबुटौक्स हमारे ब्रैस्ट्स ही तो बढ़ाता है। बाकी का शरीर तो खुद ही मेंटेन करना है।" नीरज जी ने कहा। "आप तो सब कुछ ही मेंटेन कर रहे हैं" ना चाहते हुए भी, मोनू का लहजा, व्यंग्यात्मक हो गया। "मैं इसमें कोई बुराई नहीं समझता हूँ" नीरज जी बिल्कुल सरलता से बोले। " इनको औफिस में पता नहीं किस किस मुसीबत से जूझना पड़ता है। हर आफत का सामना करने के बाद जब ये घर वापस आती हैं तो उस समय इनका स्वागत करने के लिए मैं अगर सजधज कर इंतजार करता मिलूँ तो इनका भी मन तरोताजा हो जाता है। "इंतजार तो मैं भी करता हूँ पर गरिमा तो आते ही झुंझलाने लगती है।" मोनू के स्वर में कड़वाहट थी। 

नीरज जी मुस्कुरा दिये, "दरअसल तुम्हारी प्रौब्लम ही यही है। तुम हाउस हसबैंड तो बन गए हो लेकिन तुमने जीजी को घर की मालकिन नहीं माना है। तुम इस समय भी उनका नाम ले रहे हो। यदि तुम वास्तव में सुखी रहना चाहते हो तो उनके सामने पूरी तरह आत्मसमर्पण करना पड़ेगा। उनके दिल पर राज करना है तो उनका गुलाम बनना पड़ेगा। जिस दिन, तुम अपनी खुशी से पहले, उनकी खुशी के बारे में सोचना शुरू कर दोगे, उसी दिन तुम्हें खुशी के असली मायने पता चल जाएँगे।"


मोनू की आँखों में नमी आ गई थी। रुँधे हुए गले से उसने नीरज जी से पूछा,"आप बताइए कि मैं अब क्या करूँ?" नीरज जी खड़े हुए और मोनू को गले से लगा लिया। बहुत धीमी आवाज में उन्होंने कहा," तुम अभी तक नहीं समझे। मुझसे मत पूछो। सिर्फ वो करो जो गरिमा जीजी चाहती हैं। सबसे पहले उनका नाम लेना बन्द करो और उनको वो इज्ज़त दो जिसकी वो हकदार हैं"।

अपने फ्लैट में वापस लौट कर, मोनू काफी देर तक इसी बारे में सोचता रहा। एक ओर उसकी विलुप्त होती मर्दानगी थी और दूसरी ओर पारिवारिक जीवन का अस्तित्व। बहुत देर तक सोचने के बाद उसने अपनी मर्दानगी के बलिदान का निश्चय कर लिया।

उस दिन गरिमा को औफिस से लौटने में बहुत देर हो गई। उसका मोबाइल भी बन्द था। रात नौ बजे तक मोनू का घबराहट से बुरा हाल हो गया था जब उसने गरिमा को सोसायटी के गेट से अन्दर आते देखा। वह भागा भागा पास पहुँचा तो उसने देखा कि गरिमा लड़खड़ा रही थी और उसमे से शराब की बदबू आ रही थी। मोनू उसको सहारा दे कर अन्दर लाया और बिस्तर पर लिटाया। गरिमा ने लड़खड़ाती ज़ुबान मे सिर्फ इतना कहा," सौरी डार्लिंग, रिया ने औफिस मे अपने प्रमोशन की पार्टी दी थी। उसमें कुछ ज्यादा हो गई"। इतना कह कर गरिमा ने करवट बदली और सो गई।

मोनू पलक झपकते ही सारा मामला समझ गया। उस दिन की औफिस पार्टी में रिया के पति ने बहुत सुन्दर साड़ी पहनी थी और बहुत देर तक गरिमा की बौस के पति के साथ बातें कर रहा था। बात तो मोनू ने भी करने की कोशिश की थी लेकिन उसके कोट पैंट मे होने के कारण किसी भी महिला या पुरुष ने उससे बात करना पसंद नहीं किया था।प्रमोशन के लिए बोर्ड की मीटिंग में यह बात ज़रूर गरिमा के खिलाफ गई होगी कि जो महिला अपने पति को मैनेज नहीं कर पा रही है वो कम्पनी मैनेज कैसे करेगी, इसीलिए गरिमा की जगह रिया को मैनेजर बनाया गया था।

सच्चाई यही थी कि ज्यादातर महिलाओं ने अपने पतियों को जबरन बैबुटौक्स लगवा कर इस रूप में पहुँचा दिया था लेकिन गरिमा, मोनू से बहुत प्यार करती थी और उसकी मर्जी के विरुद्ध, उससे मारपीट कर के, जबरदस्ती कोई काम नहीं कराना चाहती थी। मोनू का दिल, ग्लानि से भर गया। उसने गरिमा के सोते मे ही, उसके जूते मोज़े उतारकर, उस पर चादर उड़ाई और उसकी बगल में सोने के लिए लेट गया।

अगले दिन सुबह, मोनू जैसे बदल चुका था। जब से गरिमा ने बैबुटौक्स लगवाया था, वो रोज़ सुबह मोनू की आधी नींद में ही, उसे बाँहों में भर के छेडख़ानी करती थी और मोनू को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। इसके बिल्कुल विपरीत, आज सुबह, जब गरिमा ने उसे बाँहों मे लिया तो उसे बहुत अच्छा लग रहा था। रोज़ सुबह गरिमा के औफिस जाने से पहले जब वह उस पर झुँझलाती थी तो आज मोनू को उसकी झुँझलाहट पर भी प्यार आ रहा था। गरिमा के औफिस के लिए निकलने से पहले, उसने अपने हाथों से गरिमा की टाई की गाँठ ठीक की और नज़र नीची कर के बोला," सुनिये जी, शाम को जल्दी घर आ जाइएगा। मुझे साथ लेकर डॉक्टर के यहाँ चलना है"। "क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है? और मैं गरिमा से 'सुनिये जी' कब से हो गई? गरिमा ने एक साथ तीन सवाल दाग दिये।

"मुझे बैबुटौक्स लगवाना है" शरमाते हुए मोनू ने जवाब दिया।

गरिमा ने मोनू को अपनी बाँहों मे भर कर हवा में उठा लिया। 

बदलता नज़रिया Part I

फेसबुक पर कुछ मित्रों के आग्रह पर यह पोस्ट मैं हिंदी में लिख रहा हूँ। मेरी व्यक्तिगत जीवन की एकरूपता के कारण, मैं ज्यादातर फैंटेसी ही लिख रहा था लेकिन सब लोग इसमें भी चेंज चाहते हैं और एक ऐसी फैंटेसी चाहते हैं जिसमें पुरुष पात्र को जबरन अपना पहनावा और तौर तरीके बदलने पड़ें।
मैं अपने मित्रों के दिये हुए बिषय पर ही यह नई फैंटेसी लिख रहा हूँ। पसंद आये तो बताना ज़रूर।

तारीख 25 नवंबर, 2054
स्थान नई दिल्ली।

तीसरे विश्व युद्ध को लगभग तीस वर्ष बीत चुके हैं। चीन और अमेरिका के बीच हुए इस युद्ध से कोई भी देश अछूता नहीं रह पाया था और विश्व की आधी आबादी इस महाविनाश की भेंट चढ़ गई थी। युद्ध के बाद होने वाली विवेचना में यह बात स्पष्ट थी कि यदि निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ महिलाओं पर होता तो शायद यह महाविनाश टाला जा सकता था। परिणाम स्वरूप बड़ी बड़ी कम्पनियों ने अपने महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं को ही नियुक्त करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में ज्यादातर देशों में राष्ट्राध्यक्ष भी महिलाएं ही बन गईं और सेनाओं के उच्च पद भी उन्हीं के लिए आरक्षित हो गए। कुछ पुरुषों ने विरोध किया लेकिन किसी ने सुना ही नहीं।

महिलाओं ने नई ज़िम्मेदारियाँ ज़रूर ले ली थीं लेकिन उनकी शारिरिक स्थिति कमज़ोर थी। ऐसे समय में एक नई दवा का आविष्कार हुआ। बैबुटौक्स नाम की इस दवा के तीन इन्जेक्शन लेने से महिलाओं की मांसपेशियां मजबूत हो जाती थीं। लेकिन इसका साइड इफ़ेक्ट हुआ कि उनके स्तन पुरुषों की तरह हो जाते थे। कामकाजी महिलाओं के लिए शारिरिक ताकत होना ज़रूरी था अतः अधिकतर महिलाओं ने स्तनों को बेकार मानते हुए, बैबुटौक्स ले लिया। वैसे भी उन्हें अब अपना जीवनसाथी चुनने के लिए बड़े स्तनों की नहीं, बल्कि अच्छी नौकरी की ज़रूरत थी।

महिलाओं के कारण पुरुषों के लिए नौकरियों का अकाल सा पड़ गया। अधिकतर पुरुषों को नौकरी से निकाल दिया गया था। ऐसे में अपराध बढे तो महिला पुलिस को ऐसे पुरुषों के विरुद्ध असीमित अधिकार दे दिए गए। बैबुटौक्स, पुरुषों में उल्टा असर करता था। ऐसे में जो भी पुरुष अपराध करते हुए पकड़ा जाता था उसे पुलिस बैबुटौक्स के तीन इन्जैक्शन लगा देती थी। ऐसे पुरुष कमजोर हो जाते थे एवं अपराध से तौबा कर लेते थे लेकिन उनके स्तन भी बढ़ जाते थे। 

आश्चर्यजनक रूप से, ऐसे लड़कों की मांग शादी के लिए बढ़ गई। कामकाजी लड़कियाँ ऐसे लड़कों से ही शादी करना चाहती थीं जो शादी के बाद उनके घर में रह कर घर की जिम्मेदारी सँभालें और भविष्य में होने वाले बच्चों को भी अपना दूध पिला सकें। इससे वह अपने कैरियर पर ज्यादा ध्यान दे सकती थीं।

समय बदलने के साथ ही फैशन इन्डस्ट्री की सोच बदली। कैरियर की भागदौड में महिलाएं सजने संवरने पर ध्यान नहीं दे रही थीं लेकिन घरेलू पुरुष खुद को उनके लिए आकर्षक बनाए रखना चाहते थे। कुँवारे लड़कों के लिए बैबुटौक्स लेकर खूबसूरत परिधान पहनना, एक प्रकार से समाज को यह संदेश था कि यह लड़का विवाह के बाद एक घरेलू पति की भूमिका निभाने के लिए तैयार है और यही उनके लिए अच्छा घर और कमाऊ पत्नी मिलने की उम्मीद थी। 

मोनू एक घरेलू पति था और उसकी पत्नी गरिमा एक बड़ी सौफ्टवेयर कम्पनी मे काम करती थी। कुछ साल पहले तक मोनू नौकरी करता था और गरिमा घर का कामकाज लेकिन अब सब बदल गया था। मोनू को नौकरी से निकाल दिया गया और उनकी नौकरी गरिमा को मिल गई। जब बहुत कोशिश पर भी दूसरी नौकरी नहीं मिली तो मोनू ने नियति स्वीकार कर ली और हाउस हसबैंड बन गया। सुबह जल्दी उठ कर गरिमा के लिए चाय नाश्ता तैयार करने से लेकर खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना, झाड़ू पोंछा इत्यादि सब काम मोनू करने लगा क्योंकि गरिमा तो सुबह नौ बजे औफिस जाकर रात आठ बजे तक ही घर लौटती थीं। गरिमा इतना थक जाती थी कि जल्दी ही उसने बैबुटौक्स इन्जेक्शन का कोर्स ले लिया। 

बैबुटौक्स के बाद मोनू ने गरिमा मे आश्चर्यजनक परिवर्तन नोट किया। वह न सिर्फ शारिरिक बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत मजबूत हो गई थीं। सैक्स लाइफ में भी गरिमा पहले से भी ज्यादा आक्रामक हो गई थी। स्तन फ्लैट हो जाने के बाद से हमेशा सैक्स की शुरुआत उसी की तरफ से होती थी और जब तक वह पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं हो जाती थी तब तक मोनू के लाख विनती करने पर भी उसे नहीं छोड़ती थी। मोनूू के साथ, उनका व्यवहार भी सख्त हो गया था। छोटीछोटी बात पर मोनू को झिड़क देना उनकी आदत हो गई थी। उनकी डाँट से बचने के लिए मोनू रोज़ उन्हें खुश करने की कोशिश करता था लेकिन गरिमा खुश नहीं रहती थीं। 
"
इसकी वजह एक दिन मोनू को पता चल गई जब गरिमा ने उसको भी बैबुटौक्स लगवाने को कहा। मोनू ने कहा "लेकिन आपने बैबुटौक्स लेते समय वायदा किया था कि मुझे बैबुटौक्स के लिए कभी मजबूर नहीं करोगी।" गरिमा की आवाज़ थोड़ी सख्त थी "मैं सिर्फ तुम्हें बता रही हूं कि कल की औफिस पार्टी में तुम अकेले पुरुष थे जो कि पैन्ट कोट मे थे और मेरी सभी फ्रैंड्स के पति साड़ी पहने हुए थे। मेरा प्रमोशन ड्यू है और मेरी बौस ने मुझसे पूछा कि अगर मैं अपने पति तक को मैनेज नहीं कर सकती तो इतनी बड़ी कम्पनी कैसे मैनेज करूँगी?" "लेकिन मुझे साड़ी पहनना अच्छा नहीं लगता है" मोनू की आवाज़ दबी हुई थी। गरिमा तैश में आ गईं, "मुझे भी औफिस जाना अच्छा नहीं लगता लेकिन सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। तुम्हारा अगर काम चल भी गया तो आगे होने वाले बच्चों का क्या होगा? तुम अच्छी तरह समझते हो कि अगर हमारे बेटा हुआ तो उसको शादी के बाद अपनी पत्नी के घर पर ही रहना होगा आज के ज़माने में उसकी पत्नी, उसका शर्ट पैंट पहनना बर्दाश्त नहीं करेगी।क्या उदाहरण रखोगे तुम उसके सामने?"

मोनू के पास कोई जवाब नहीं था। गरिमा ने अपना ब्रीफकेस उठाया और औफिस के लिए निकल गई।

गरिमा के औफिस जाने के बाद, मोनू रोज़ की तरह घर के कामकाज में लग गया।पिछले कुछ समय में वह इन कामों में कुशल हो गया था। वाशिंग मशीन लगा कर झाड़ू पोंछा करने और दाल को प्रैशर कुकर में रख कर बर्तन माँजने से अब उसे अपने लिए भी समय मिल जाता था। साड़े बारह बजे तक उसके काम खत्म हो गए थे और बारह.पैंतालीस पर डिब्बे वाला गरिमा का पैक किया हुआ लंच बॉक्स लेकर जा चुका था।लेकिन आज मोनू को रोज़ की तरह नींद नहीं आई। उसे बार बार यही ख्याल आ रहा था कि गरिमा रोज़ कितनी मेहनत कर के रुपये कमाती है जिससे घर के खर्च चलते हैं और इसके बदले में उसने अपनी ज़िद मे औफिस पार्टी में साड़ी नहीं पहन कर गरिमा की पोजिशन खराब की थी। 

मोनू को ध्यान आया कि उसके पड़ोसी नीरज जी भी हाउस हसबैंड हैं और छह महीने पहले ही बैबुटौक्स लगवा चुके हैं। नीरज जी अब साड़ी में ही रहते थे। मोनू कुछ देर तक सोचता रहा और फिर अचानक ही उसने फ्लैट का ताला लगाया और नीरज के फ्लैट की ओर चल पड़ा।